May 19, 2007

जंग-ऐ-आज़ादी

1857 की क्रांती को आज 150 साल हो गए, आजादी मिली और ....
आज इंडिया गेट भी स्तब्ध है इस आजादी से।
कुछ पल जो मैंने बिताये उस दिन,
मुझे कुछ कहता हुआ सा लगा इंडिया गेट,
उसकी भावनाओ को लिखने कि कोशिश की है;
जो कुछ मै समझ सका,
आपके सामने है।
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जंग-ऐ-आज़ादी कि मशाल जली और बुझ गयी ।
हम आज़ाद हो गए बाहरवालों से ।

आज 150 साल हो चुके है उस सूरज को जो
उगा था 1857 में ।

और आज एक सूरज अस्त हो रहा है;
अपनी आज़ादी का ।

हम गुलाम हो गए है अपनो के ।
आज हमारी आवाज़ हमी तक नहीं पहुंचती,
आज
हमारे ही लोग हमारा शोषण करते है,
आज हम एक और अंधकार में घिर गए है,
वो जो दिन के रौशन उजाले में दिखाता है ।

बस एक चीज जो नहीं दिखती ,वो है
आज़ादी....

2 comments:

Anonymous said...
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Rachna Singh said...

azzadidd deknae ke cheeze nahin mehsoos karnae kee cheez hae. hamarae bacchoo kee haseen mae hamare azadi hae . agar hum apnee soch mae azad hae toh hum azad hae. sawal sirf nazarayee ka haa